अब ये मौसम कातिलाना हो चुका है दुश्मन का अब शहर आना हो चुका है। तुम खुद को अब मत ढूंढना इस शहर में तेरा इस दिल में ठिकाना हो चुका है। अंधेरों का राज होगा इस धरा पर तारों का तो झिलमिलाना हो चुका है। महफिल मे अब तुम गुनगुनाओ जरा सा इस गम में डूबना डुबाना हो चुका है। छुट्टी के लिए है अब बहाना एक नया सा, हर एक कारण अब पुराना हो चुका है। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की ग़ज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अब ये मौसम कातिलाना
अब ये मौसम कातिलाना हो चुका है
दुश्मन का अब शहर आना हो चुका है।
तुम खुद को अब मत ढूंढना इस शहर में
तेरा इस दिल में ठिकाना हो चुका है।
अंधेरों का राज होगा इस धरा पर
तारों का तो झिलमिलाना हो चुका है।
महफिल मे अब तुम गुनगुनाओ जरा सा
इस गम में डूबना डुबाना हो चुका है।
छुट्टी के लिए है अब बहाना एक नया सा,
हर एक कारण अब पुराना हो चुका है।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की ग़ज़ल
पी एल बामनिया जी की रचनाएँ
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