ऐ रावण कब जलेगा
लंकापति रावण ने
सीता अपहरण की
सजा पाई ।
राज-पाट सब गँवाया
लोक-लाज भी गँवाई ।
श्रीराम के हाथो दंडित
हो ,जान अपनी गँवाई।
नारी जाति के स्वाभिमान
के लिए श्रीराम आगे आते है।
दुष्ट रावण के कुचक्रो से,
जानकी को छुडा लाते है ।
आज न जाने कितनी ही
सीताएँ, रोज अगवा होती है।
दुष्ट रावणो के हाथो, प्राण
अपने गँवा देती है ।
न कोई राम यहाँ, जो
रावण को दंडित करे ।
न कोई हनुमान यहाँ जो
पाप की लंका जलाएँ ।
घुम रहे है रावण हर गली
किसी सीता को अगवा करने।
बन रही है स्वर्ण लंकाएँ
पाप की नगरी बसाएँ ।
हर तरफ रावण है, और
उसकी पापी लंकाएँ
कैसे रहे सुरक्षित
हमारी प्यारी बेटियाँ ।
हर बरस रावण जलकर,
फिर असंख्य क्यूँ पैदा होते ।
मासुम कलियो पर भी,
बेरहम व क्रूर ऐ होते ।
भीतर बैठा रावण मरता
नही, वह तो हँसता है ।
जिसे तुम जलाते हो वो
महज एक पुतला है ।
जिन्दा रावण है, वह कभी
मरा नही, अपनी खोई
प्रतिष्ठा से वह निर्लज्ज डरा नही।
इसलिए तो बैखोंफ, सरेआम
घुमते है ।
ऐसे रावण मरते नही, मारने
पडते है ।
ऐ रावण कब जलेगा
ऐ रावण कब जलेगा
लंकापति रावण ने
सीता अपहरण की
सजा पाई ।
राज-पाट सब गँवाया
लोक-लाज भी गँवाई ।
श्रीराम के हाथो दंडित
हो ,जान अपनी गँवाई।
नारी जाति के स्वाभिमान
के लिए श्रीराम आगे आते है।
दुष्ट रावण के कुचक्रो से,
जानकी को छुडा लाते है ।
आज न जाने कितनी ही
सीताएँ, रोज अगवा होती है।
दुष्ट रावणो के हाथो, प्राण
अपने गँवा देती है ।
न कोई राम यहाँ, जो
रावण को दंडित करे ।
न कोई हनुमान यहाँ जो
पाप की लंका जलाएँ ।
घुम रहे है रावण हर गली
किसी सीता को अगवा करने।
बन रही है स्वर्ण लंकाएँ
पाप की नगरी बसाएँ ।
हर तरफ रावण है, और
उसकी पापी लंकाएँ
कैसे रहे सुरक्षित
हमारी प्यारी बेटियाँ ।
हर बरस रावण जलकर,
फिर असंख्य क्यूँ पैदा होते ।
मासुम कलियो पर भी,
बेरहम व क्रूर ऐ होते ।
भीतर बैठा रावण मरता
नही, वह तो हँसता है ।
जिसे तुम जलाते हो वो
महज एक पुतला है ।
जिन्दा रावण है, वह कभी
मरा नही, अपनी खोई
प्रतिष्ठा से वह निर्लज्ज डरा नही।
इसलिए तो बैखोंफ, सरेआम
घुमते है ।
ऐसे रावण मरते नही, मारने
पडते है ।
– हेमलता पालीवाल “हेमा”
हेमलता पालीवाल " हेमा" जी की रचनाएँ
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