आज की रात शुभ है मिलन के लिए, कौन जाने कभी हम मिले ना मिलें | यदि मिलें भी कभी ऐसा विश्वास क्या, फूल मन के हमारे खिले ना खिलें | रोशनी मिल गयी है तुम्हें देखकर, मन अंधेरे में मेरा भटकता रहा | दीप मन के हमारे अभी जल रहे, कौन जाने कभी फिर जलें ना जलें | वादियों में तेरा स्वर मधुर गूंजता, मेरी तनहाई मुझको सताती रहीं मोम सा मन हमारा पिघलने लगा, कौन जाने कभी फिर गले ना गले | एक अरसा हुआ तुमको देखे हुये, एक मुद्दत हुयी पास बैठे हुये | आज हैं सामने कोई शिकवा नहीं, कौन जाने कि कल हम रहें ना रहें | जिन्दगी एक रफ्तार से चल रही, आँसुवों से सदा तरवतर हो रही, साँस चलती है चलने कि नियत वनी, कौन जाने कि कल फिर चले ना चले | आज कि रात शुभ है मिलन के लिए, कौन जाने कभी फिर मिलें ना मिलें | – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
आज की रात शुभ है
आज की रात शुभ है मिलन के लिए,
कौन जाने कभी हम मिले ना मिलें |
यदि मिलें भी कभी ऐसा विश्वास क्या,
फूल मन के हमारे खिले ना खिलें |
रोशनी मिल गयी है तुम्हें देखकर,
मन अंधेरे में मेरा भटकता रहा |
दीप मन के हमारे अभी जल रहे,
कौन जाने कभी फिर जलें ना जलें |
वादियों में तेरा स्वर मधुर गूंजता,
मेरी तनहाई मुझको सताती रहीं
मोम सा मन हमारा पिघलने लगा,
कौन जाने कभी फिर गले ना गले |
एक अरसा हुआ तुमको देखे हुये,
एक मुद्दत हुयी पास बैठे हुये |
आज हैं सामने कोई शिकवा नहीं,
कौन जाने कि कल हम रहें ना रहें |
जिन्दगी एक रफ्तार से चल रही,
आँसुवों से सदा तरवतर हो रही,
साँस चलती है चलने कि नियत वनी,
कौन जाने कि कल फिर चले ना चले |
आज कि रात शुभ है मिलन के लिए,
कौन जाने कभी फिर मिलें ना मिलें |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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