आज से मैं
इस कोशिश में
लग गया हूँ कि
शहरों और गाँवों की
समूची बस्तियों को
छोटी-बड़ी सभी
हस्तियों के साथ ले चलकर
बाँस के जंगलों में
रख दिया जाये
क्योंकि…………
सभी मकानों की नीवें
खोखली हो गयी हैं
कितनी मेहनत के बाद बनी थी
घिसुआ की यह झोपड़ी
लेकिन……..शायद………..
आँधी को
उसका अस्तित्व बने रहना
सहन न हुआ
और उसको
तिनके-तिनके करके उजाड़ डाला
उधर आलीशान महलों में
छलकता रहा मस्तियों का प्याला
आज से मैं
आज से मैं
इस कोशिश में
लग गया हूँ कि
शहरों और गाँवों की
समूची बस्तियों को
छोटी-बड़ी सभी
हस्तियों के साथ ले चलकर
बाँस के जंगलों में
रख दिया जाये
क्योंकि…………
सभी मकानों की नीवें
खोखली हो गयी हैं
कितनी मेहनत के बाद बनी थी
घिसुआ की यह झोपड़ी
लेकिन……..शायद………..
आँधी को
उसका अस्तित्व बने रहना
सहन न हुआ
और उसको
तिनके-तिनके करके उजाड़ डाला
उधर आलीशान महलों में
छलकता रहा मस्तियों का प्याला
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की रचनाएँ
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