आँख से मिलाई आँख चैन छीन ले गए वो,
मन का मयूर झूम झूम नाचने लगा।
दुनिया की सारी पुस्तकों को रखा ताख पर,
प्रेम ग्रन्थ ध्यान मग्न हो मैं बाँचने लगा।
भूख प्यास रूठ गई नींद भी है गुम कहीं,
सेहत हमारी हर कोई जाँचने लगा।
पोखर में उतरा मैं कभी भी रजत नहीं,
दरिया में डूब किन्तु थाह नापने लगा।।
आँख से मिलाई आँख चैन छीन ले गए वो
आँख से मिलाई आँख चैन छीन ले गए वो,
मन का मयूर झूम झूम नाचने लगा।
दुनिया की सारी पुस्तकों को रखा ताख पर,
प्रेम ग्रन्थ ध्यान मग्न हो मैं बाँचने लगा।
भूख प्यास रूठ गई नींद भी है गुम कहीं,
सेहत हमारी हर कोई जाँचने लगा।
पोखर में उतरा मैं कभी भी रजत नहीं,
दरिया में डूब किन्तु थाह नापने लगा।।
–अवधेश कुमार ‘रजत’
अवधेश कुमार 'रजत' जी की ग़ज़ल
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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