आओ कुछ मनसायन कर लो
मन का ताप पिघल जायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही
का अभिशाप बदल जायेगा
कितनी सदियों से घबराये
मौसम की दीवार ढह गयी
झंझावातों की फिसलन से
माझी की पतवार बह गयी
एकाकी घातों प्रतिघातों
से जीवन संकल्प टूटता
आशाओं का दीप बुझाता
साथी का भी साथ छूटता
मत घबराओ दुनिया का
यह परिवर्तन रस बरसायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही का
अभिशाप बदल जायेगा
रतनारे नैनों के कुंकुम
जब पलाश में आग लगाते
बौराये आमों की डाली
पर सपने सुकुमार सजाते
वातायन में कैद रोशनी
सहम सहम नीचे आती है
जैसे कोई परी सयानी
मौसम देख ठिठक जाती है
तुम भी आओ कुछ तो गाओ
बर्ना समय निकल जायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही का
अभिशाप बदल जायेगा
सपनों के संसार अनूठे
जीवन में रस बरसाते हैं
एक बूँद अमृत के खातिर
सौ सौ जहर पिये जाते हैं
बन्धन की सौगात अकेली
जब भौरे का गीत बन गयी
कलियों की मुसकान न जाने
किसको अपना मीत कह गयी
दो दिन का जीवन है साथी
बैठो दर्द पिघल जायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही का
अभिशाप बदल जायेगा |
आओ कुछ मनसायन
आओ कुछ मनसायन कर लो
मन का ताप पिघल जायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही
का अभिशाप बदल जायेगा
कितनी सदियों से घबराये
मौसम की दीवार ढह गयी
झंझावातों की फिसलन से
माझी की पतवार बह गयी
एकाकी घातों प्रतिघातों
से जीवन संकल्प टूटता
आशाओं का दीप बुझाता
साथी का भी साथ छूटता
मत घबराओ दुनिया का
यह परिवर्तन रस बरसायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही का
अभिशाप बदल जायेगा
रतनारे नैनों के कुंकुम
जब पलाश में आग लगाते
बौराये आमों की डाली
पर सपने सुकुमार सजाते
वातायन में कैद रोशनी
सहम सहम नीचे आती है
जैसे कोई परी सयानी
मौसम देख ठिठक जाती है
तुम भी आओ कुछ तो गाओ
बर्ना समय निकल जायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही का
अभिशाप बदल जायेगा
सपनों के संसार अनूठे
जीवन में रस बरसाते हैं
एक बूँद अमृत के खातिर
सौ सौ जहर पिये जाते हैं
बन्धन की सौगात अकेली
जब भौरे का गीत बन गयी
कलियों की मुसकान न जाने
किसको अपना मीत कह गयी
दो दिन का जीवन है साथी
बैठो दर्द पिघल जायेगा
चौराहे पर खड़े बटोही का
अभिशाप बदल जायेगा |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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