अब तो साजन देख ले थोड़ा मेरी ओर दो पल को मिल जायेगी इस हियड़े को ठोर कोयल अब कूके नहीं काग हँसे हर दवार सावन के घर लग रहा पतझर का दरबार सूख गया पानी सभी, रूठ गया व्यवहार आग उगलता आदमी मानवता लाचार कोई भी दिखता नहीं हमको खुली किताब मुखड़े पर हर आदमी डाले हुए नकाब पहले अपने आप को थोड़ा तो दे मान भाई ! फिर करना यहाँ दूजों का सम्मान हँसकर जी ये ज़िन्दगी बजा नेह का साज मीठी मीठी बात कर क्यों होता नाराज़ माँ तो इक संगीत है माँ जीवन का गीत माँ से बढ़कर कौन है सोच जरा ओ ! मीत – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
अब तो साजन देख
अब तो साजन देख ले थोड़ा मेरी ओर
दो पल को मिल जायेगी इस हियड़े को ठोर
कोयल अब कूके नहीं काग हँसे हर दवार
सावन के घर लग रहा पतझर का दरबार
सूख गया पानी सभी, रूठ गया व्यवहार
आग उगलता आदमी मानवता लाचार
कोई भी दिखता नहीं हमको खुली किताब
मुखड़े पर हर आदमी डाले हुए नकाब
पहले अपने आप को थोड़ा तो दे मान
भाई ! फिर करना यहाँ दूजों का सम्मान
हँसकर जी ये ज़िन्दगी बजा नेह का साज
मीठी मीठी बात कर क्यों होता नाराज़
माँ तो इक संगीत है माँ जीवन का गीत
माँ से बढ़कर कौन है सोच जरा ओ ! मीत
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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