बनकर के परछाई मेरी ना करना रुसवाई मेरी है अहसान बहुत आईने सूरत तो दिखलाई मेरी रखते-रखते ये सर ऊंचा गरदन भी दुख आई मेरी जैसे-जैसे दिन ढलता है बढ़ती है कठिनाई मेरी उपदेशों से तो बढ़कर ठोकर ही रंग लाई मेरी मुझसे मेले ले लो सारे लौटा दो तन्हाई मेरी बस उसके एक इशारे ने उलझन सब सुलझाई मेरी इन्तजार में अब फूलों के आंखें भी पथराई मेरी उलझी जितनी भी सुलझाई किस्मत है बल खाई मेरी – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बनकर के परछाई मेरी
बनकर के परछाई मेरी
ना करना रुसवाई मेरी
है अहसान बहुत आईने
सूरत तो दिखलाई मेरी
रखते-रखते ये सर ऊंचा
गरदन भी दुख आई मेरी
जैसे-जैसे दिन ढलता है
बढ़ती है कठिनाई मेरी
उपदेशों से तो बढ़कर
ठोकर ही रंग लाई मेरी
मुझसे मेले ले लो सारे
लौटा दो तन्हाई मेरी
बस उसके एक इशारे ने
उलझन सब सुलझाई मेरी
इन्तजार में अब फूलों के
आंखें भी पथराई मेरी
उलझी जितनी भी सुलझाई
किस्मत है बल खाई मेरी
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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