बार बार क्यों लड़ रहे लड़ो एक ही बार बात हो आर पार की जीत हो या फिर हार जहाँ हँसें बच्चे सनम ! करें तोतली बात प्रात वहीँ हँसती सनम ! वहाँ न होती रात सनम नजर के फेर को, समझ गया जो शेर जो न समझा सनम इसे उसका बन्टा ढेर अपने घर के दवार का पर्दा यूँ मत खोल सब कुछ पर्दे में रहे बात यही अनमोल भाई कैसा हो गया आज देख माहोल मोदी ने जब से किये नोट देश से गोल अपने अपने ढंग से बजा रहे हैं चंग और जहां में लड़ रहा हर व्यक्ति इक जंग देख समय के साथ में कैसा ये बदलाव कभी न जिसने कुछ किया चला रहा है नाव – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
बार बार क्यों लड़ रहे
बार बार क्यों लड़ रहे लड़ो एक ही बार
बात हो आर पार की जीत हो या फिर हार
जहाँ हँसें बच्चे सनम ! करें तोतली बात
प्रात वहीँ हँसती सनम ! वहाँ न होती रात
सनम नजर के फेर को, समझ गया जो शेर
जो न समझा सनम इसे उसका बन्टा ढेर
अपने घर के दवार का पर्दा यूँ मत खोल
सब कुछ पर्दे में रहे बात यही अनमोल
भाई कैसा हो गया आज देख माहोल
मोदी ने जब से किये नोट देश से गोल
अपने अपने ढंग से बजा रहे हैं चंग
और जहां में लड़ रहा हर व्यक्ति इक जंग
देख समय के साथ में कैसा ये बदलाव
कभी न जिसने कुछ किया चला रहा है नाव
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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