माथे बिंदी पाँव महावर लाज क घूँघट ओढ़ चलल, नाता रिश्ता नइहर वाला पल भर में ही गैर भयल। गुड्डा गुड़िया खेले वाली बेटी लोर बहावेले, सोन चिरइया छोड़ अँगनवा ससुरारी के ओर उड़ल। –अवधेश कुमार ‘रजत’ अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
माथे बिंदी पाँव महावर
माथे बिंदी पाँव महावर
लाज क घूँघट ओढ़ चलल,
नाता रिश्ता नइहर वाला
पल भर में ही गैर भयल।
गुड्डा गुड़िया खेले वाली
बेटी लोर बहावेले,
सोन चिरइया छोड़ अँगनवा
ससुरारी के ओर उड़ल।
–अवधेश कुमार ‘रजत’
अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें