भाई इतनी फेंक मत, मत दिखला तू जात जो गरजे बरसे नहीं जग जाने ये बात ढाल ज़रा खुद को सनम ! जीवन के अनुसार हो जायेंगे सपन सनम ! सब तेरे गुलज़ार दोहो ने जब से किया इस हिय का श्रृंगार कवियों के दरबार का बन गया मैं गलहार हार गया मतदान वो घूम रहा बेकार अब उस घर लगता नहीं पहले सा दरबार दूर खड़ा क्यों पास आ बौराया मधुमास सपनों को आकाश दे सनम दूर कर प्यास जीवन भर करता रहा जो सबका उपहास ऐसे व्यक्ति को बता कौन रखेगा पास अपनों से ये दूरियाँ समझ न आये बात अपनापन क्यों खा रहा क़दम क़दम पर – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भाई इतनी फेंक मत
भाई इतनी फेंक मत, मत दिखला तू जात
जो गरजे बरसे नहीं जग जाने ये बात
ढाल ज़रा खुद को सनम ! जीवन के अनुसार
हो जायेंगे सपन सनम ! सब तेरे गुलज़ार
दोहो ने जब से किया इस हिय का श्रृंगार
कवियों के दरबार का बन गया मैं गलहार
हार गया मतदान वो घूम रहा बेकार
अब उस घर लगता नहीं पहले सा दरबार
दूर खड़ा क्यों पास आ बौराया मधुमास
सपनों को आकाश दे सनम दूर कर प्यास
जीवन भर करता रहा जो सबका उपहास
ऐसे व्यक्ति को बता कौन रखेगा पास
अपनों से ये दूरियाँ समझ न आये बात
अपनापन क्यों खा रहा क़दम क़दम पर
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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