भाई कैसे हो गये हम इतने मजबूर अपनों से ही हम नहीं खुद से भी हैं दूर कुछ तो ऐसा कर नया छू ले तू आकाश अपने सब तुझ पर करें आँख मीच विश्वास तोड़ रहा है आदमी देख ! नेह की भीत कुछ तो तू आवाज़ कर चुप क्यों बैठा मीत हरियाली बनकर हँसों बनो न सूखे ठूंठ छोटी छोटी बात पर क्यों जाते हो रूठ सुबहा को सुबहा कहे कहे रात को रात दरपन झूठ न बोलता जग जाने ये बात पीली सरसों खेत में हिय मेरा हरषाय गले लगा ले साजना काहे को तड़फाय अनेकता में एकता मेरा हिन्दुस्तान इसीलिए संसार में इसकी है पहचान – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भाई कैसे हो गये हम
भाई कैसे हो गये हम इतने मजबूर
अपनों से ही हम नहीं खुद से भी हैं दूर
कुछ तो ऐसा कर नया छू ले तू आकाश
अपने सब तुझ पर करें आँख मीच विश्वास
तोड़ रहा है आदमी देख ! नेह की भीत
कुछ तो तू आवाज़ कर चुप क्यों बैठा मीत
हरियाली बनकर हँसों बनो न सूखे ठूंठ
छोटी छोटी बात पर क्यों जाते हो रूठ
सुबहा को सुबहा कहे कहे रात को रात
दरपन झूठ न बोलता जग जाने ये बात
पीली सरसों खेत में हिय मेरा हरषाय
गले लगा ले साजना काहे को तड़फाय
अनेकता में एकता मेरा हिन्दुस्तान
इसीलिए संसार में इसकी है पहचान
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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