भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार धो माँ! मेरे पाप सब, मुझे बना इन्सान अन्तस् में भर ज्ञान वो, जिससे में अनजान माँ! से रिश्ता जोड़ ले, माँ से कर अनुराग माँ! कृपा जिस पर हुई, उसके जागे भाग एक बार तो बांध ले, माँ! से अपनी डोर बन जायेगी ज़िन्दगी, हँसती खिलती भोर माँ के आशीर्वाद से खूब चढ़ा है रंग दोहे कैसे रच गया, मैं खुद भी हूँ दंग तुझे नमन माँ शारदे! मुझसे रखना प्रीत जीवन भर रचता रहूँ, दोहे मुक्तक गीत लेखन की गति ना रुके, माँ! न कभी हो मन्द सपनों में भी मैं रचूं आशावादी छन्द – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के दोहे जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
भीतर उठते भाव को
भीतर उठते भाव को माँ दे दे आकार
कविता बनकर वो हँसे, जग के हरे विकार
धो माँ! मेरे पाप सब, मुझे बना इन्सान
अन्तस् में भर ज्ञान वो, जिससे में अनजान
माँ! से रिश्ता जोड़ ले, माँ से कर अनुराग
माँ! कृपा जिस पर हुई, उसके जागे भाग
एक बार तो बांध ले, माँ! से अपनी डोर
बन जायेगी ज़िन्दगी, हँसती खिलती भोर
माँ के आशीर्वाद से खूब चढ़ा है रंग
दोहे कैसे रच गया, मैं खुद भी हूँ दंग
तुझे नमन माँ शारदे! मुझसे रखना प्रीत
जीवन भर रचता रहूँ, दोहे मुक्तक गीत
लेखन की गति ना रुके, माँ! न कभी हो मन्द
सपनों में भी मैं रचूं आशावादी छन्द
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के दोहे
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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