चाहत है तो कुछ दूरी जरूरी है दर्पण जैसी मज़बूरी ज़रूरी है आपको तब तक नहीं आएगी ज़ख़्मों की जबां जब तलक कांटे से कांटे को निकाला जाएगा “इक़बाल” अभी जहां में ज़िन्दा हैं नेकिया वर्ना गुलाबों में ये खुश्बू नहीं होती कराहने में और मज़ा आता है मौत जब सिरहाने खड़ी होती – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
चाहत है तो कुछ
चाहत है तो कुछ दूरी जरूरी है
दर्पण जैसी मज़बूरी ज़रूरी है
आपको तब तक नहीं आएगी ज़ख़्मों की जबां
जब तलक कांटे से कांटे को निकाला जाएगा
“इक़बाल” अभी जहां में ज़िन्दा हैं नेकिया
वर्ना गुलाबों में ये खुश्बू नहीं होती
कराहने में और मज़ा आता है
मौत जब सिरहाने खड़ी होती
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें