चल साँझ हो गई है निकले गगन पे तारे मझधार में सफ़ीना माझी लगा किनारे इतने बड़े जहाँ में है कौन अब हमारा जो साथ में हमारे थोड़ा समय गुज़ारे ये ज़िन्दगी हमारी कैसे फिसल रही है धुंधली हुई नज़र है दीखें नहीं नज़ारे कब आयेगा बुलावा हमको बता दे तेरा दिखता नहीं कहीं तू करता नहीं इशारे अब साँस थम रही है औ, बुझ रही शमा है थोड़ी बची हैं साँसें वो भी तेरे सहारे अब आ दिखा दे जलवा अपना हसीन हमको है इन्तज़ार तेरा ये दिल तुझे पुकारे हम हैं यहाँ अकेले ‘जगदीश’ हम को लेजा तू जानता है सबकुछ ये जग हमें नकारे – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
चल साँझ हो गई है
चल साँझ हो गई है निकले गगन पे तारे
मझधार में सफ़ीना माझी लगा किनारे
इतने बड़े जहाँ में है कौन अब हमारा
जो साथ में हमारे थोड़ा समय गुज़ारे
ये ज़िन्दगी हमारी कैसे फिसल रही है
धुंधली हुई नज़र है दीखें नहीं नज़ारे
कब आयेगा बुलावा हमको बता दे तेरा
दिखता नहीं कहीं तू करता नहीं इशारे
अब साँस थम रही है औ, बुझ रही शमा है
थोड़ी बची हैं साँसें वो भी तेरे सहारे
अब आ दिखा दे जलवा अपना हसीन हमको
है इन्तज़ार तेरा ये दिल तुझे पुकारे
हम हैं यहाँ अकेले ‘जगदीश’ हम को लेजा
तू जानता है सबकुछ ये जग हमें नकारे
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
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