चलने से जो डर गया डूबी जिसकी नाव भाई ! भर सकता नहीं कभी न उसका घाव भटकन में भटका रहा ढूंढी कभी न राह कैसे होगी तू बता पूरी उसकी चाह मार रहे हैं आदमी टूट रहा विश्वास मानवता की देख लो निकल रही है सांस आतंकी फैला रहे क़दम क़दम पर जाल ढीलापन अब छोड़ दो बन जाओ सब ढाल काम करे नापाक से नाम रखा है पाक भारत से भिड़ने चला कर देंगे हम खाक अपने अन्दर का जगा सोया वो इन्सान जिस कारण डगमग हुआ तेरा ये ईमान कट रहे सब शजर यहाँ दूर हो रही छाँव साजन वापस लौट आ बुला रहा है गाँव – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
चलने से जो डर गया
चलने से जो डर गया डूबी जिसकी नाव
भाई ! भर सकता नहीं कभी न उसका घाव
भटकन में भटका रहा ढूंढी कभी न राह
कैसे होगी तू बता पूरी उसकी चाह
मार रहे हैं आदमी टूट रहा विश्वास
मानवता की देख लो निकल रही है सांस
आतंकी फैला रहे क़दम क़दम पर जाल
ढीलापन अब छोड़ दो बन जाओ सब ढाल
काम करे नापाक से नाम रखा है पाक
भारत से भिड़ने चला कर देंगे हम खाक
अपने अन्दर का जगा सोया वो इन्सान
जिस कारण डगमग हुआ तेरा ये ईमान
कट रहे सब शजर यहाँ दूर हो रही छाँव
साजन वापस लौट आ बुला रहा है गाँव
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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