आईना धुंधला ही रहने दीजिये साफ़ होगा तो सच नहीं सह पाओगे आईना भी बेश क़ीमती हो जाएगा जिस दिन ये झूठ बोलने लग जाएगा होठों से कहकर बात को छोटा न कीजिये मेहन्दी ने खुद-ब-खुद कह दी है दास्तान कारवाँ अपना बचा कर, अब कहाँ ले जाएं हम मंजिलें जलती हुयी हैं, पुरख़तर हैं रास्ते – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
चन्द खुले अश आर
आईना धुंधला ही रहने दीजिये
साफ़ होगा तो सच नहीं सह पाओगे
आईना भी बेश क़ीमती हो जाएगा
जिस दिन ये झूठ बोलने लग जाएगा
होठों से कहकर बात को छोटा न कीजिये
मेहन्दी ने खुद-ब-खुद कह दी है दास्तान
कारवाँ अपना बचा कर, अब कहाँ ले जाएं हम
मंजिलें जलती हुयी हैं, पुरख़तर हैं रास्ते
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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