चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ एक ही पल में शब का दामन चाक हुआ घर के अंदर सीधे सच्चे लोग मिले बेटा परदेसी हो कर चालाक हुआ दरवाज़ों की रातें चौकीदार हुईं और उजाला जिस्मों की पोशाक हुआ जो आया इक दाग़ लगा कर चला गया उस ने छुआ तो मेरा दामन पाक हुआ मौसम ने आवाज़ लगाई ख़ुशबू को तितली का दिल फूलों की इम्लाक हुआ मेरे जिस्म से वक़्त ने कपड़े नोच लिए मंज़र मंज़र ख़ुद मेरी पोशाक हुआ – अज़्म शाकरी अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल अज़्म शाकरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
चाँद सा चेहरा
चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ
एक ही पल में शब का दामन चाक हुआ
घर के अंदर सीधे सच्चे लोग मिले
बेटा परदेसी हो कर चालाक हुआ
दरवाज़ों की रातें चौकीदार हुईं
और उजाला जिस्मों की पोशाक हुआ
जो आया इक दाग़ लगा कर चला गया
उस ने छुआ तो मेरा दामन पाक हुआ
मौसम ने आवाज़ लगाई ख़ुशबू को
तितली का दिल फूलों की इम्लाक हुआ
मेरे जिस्म से वक़्त ने कपड़े नोच लिए
मंज़र मंज़र ख़ुद मेरी पोशाक हुआ
– अज़्म शाकरी
अज़्म शाकरी जी की ग़ज़ल
अज़्म शाकरी जी की रचनाएँ
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