कद मे बडे हुए अब जो मिनारो से। सजने लगे अब वो चाँद सितारो से। चुनावी मौसम अब नजदीक आने लगा है, सजने लगे कुछ पतझड़ भी अब बहारों से। मिलने लगे अब वो घर घर जाकर, मिलती थी जिनकी खबर अखबारो से। कोशिश है उनकी महके, पर वो महके नही, खुशबू आती कहाँ है कभी भी खारो से। हर गली मोहल्ला शहर अब सजने लगा, चुनावी कलंदरो के अजब गजब नजारों से। जादुई कारनामें इनके है कई अचरज भरे समंदर सी बस्ती मे आग लगा देंगे इशारो से। जीत जाएंगे बाजी शकुनि के हुनर आजमाए पांडवी प्रजा हार जाएगी कौरवी गद्दारों से। चुनावी नदी जाकर मिलेगी शासन समंदर मे दूर हो जाएगी वो इस लोकतंत्र के किनारों से। –पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की ग़ज़ल पी एल बामनिया जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कद मे बडे हुए अब जो मिनारो से
कद मे बडे हुए अब जो मिनारो से।
सजने लगे अब वो चाँद सितारो से।
चुनावी मौसम अब नजदीक आने लगा है,
सजने लगे कुछ पतझड़ भी अब बहारों से।
मिलने लगे अब वो घर घर जाकर,
मिलती थी जिनकी खबर अखबारो से।
कोशिश है उनकी महके, पर वो महके नही,
खुशबू आती कहाँ है कभी भी खारो से।
हर गली मोहल्ला शहर अब सजने लगा,
चुनावी कलंदरो के अजब गजब नजारों से।
जादुई कारनामें इनके है कई अचरज भरे
समंदर सी बस्ती मे आग लगा देंगे इशारो से।
जीत जाएंगे बाजी शकुनि के हुनर आजमाए
पांडवी प्रजा हार जाएगी कौरवी गद्दारों से।
चुनावी नदी जाकर मिलेगी शासन समंदर मे
दूर हो जाएगी वो इस लोकतंत्र के किनारों से।
–पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की ग़ज़ल
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