ज़िक्र मेरा जो बुराई में भी करता होगा ग़ैर तो होगा नहीं वो कोई अपना होगा चाँद को पाने की ज़िद्द उसकी बज़ा है लेकिन वो कोई दाना नहीं होगा तो बच्चा होगा हर क़दम चलके जो रूक जाता है तन्हा अक्सर अपने साये से यक़ीनन ही वो डरता होगा रू-ब-रू होने से क्यूँ डरते हो उससे आख़िर दरमियाँ उसके तेरे आज भी पर्दा होगा वक़्त निकला तो तुम्हें कुछ भी ना होगा हासिल वक़्त रहते तुम संभल जाओ तो अच्छा होगा जुस्तजू ले के गई उसको ये जाने किसकी मारा – मारा वो यूँ ही शहर में फिरता होगा रहते “इरशाद” के महफ़िल में वो छाया कैसे उसने ऐसा तो किसी ख़्वाब में देखा होगा –इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की ग़ज़ल इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
ज़िक्र मेरा जो बुराई में भी करता होगा
ज़िक्र मेरा जो बुराई में भी करता होगा
ग़ैर तो होगा नहीं वो कोई अपना होगा
चाँद को पाने की ज़िद्द उसकी बज़ा है लेकिन
वो कोई दाना नहीं होगा तो बच्चा होगा
हर क़दम चलके जो रूक जाता है तन्हा अक्सर
अपने साये से यक़ीनन ही वो डरता होगा
रू-ब-रू होने से क्यूँ डरते हो उससे आख़िर
दरमियाँ उसके तेरे आज भी पर्दा होगा
वक़्त निकला तो तुम्हें कुछ भी ना होगा हासिल
वक़्त रहते तुम संभल जाओ तो अच्छा होगा
जुस्तजू ले के गई उसको ये जाने किसकी
मारा – मारा वो यूँ ही शहर में फिरता होगा
रहते “इरशाद” के महफ़िल में वो छाया कैसे
उसने ऐसा तो किसी ख़्वाब में देखा होगा
–इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की ग़ज़ल
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