जब से उनकी नज़र हो गयी हर खुशी हमसफ़र हो गयी राहे उल्फ़त में हर इक क़दम मैं तेरी रहगुज़र हो गयी उनको पा के भी पा न सके हर दुआ बेअसर हो गयी आज की शब भी तन्हा कटी वो न आये सहर हो गयी उनसे बिछडे तो ऐसा लगा ज़िन्दगी मुख्तसिर हो गयी उसने मेहफ़िल में रुस्वा किया और मेरी आँख तर हो गयी आप सब ने मुझे सुन लिया शायरी मोतबर हो गयी बात करती है सच्ची ‘निशा’ अब तो ये भी निडर हो गयी – डॉ. नसीमा ‘निशा’ डॉ. नसीमा निशा जी की ग़ज़ल डॉ. नसीमा निशा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जब से उनकी नज़र हो गयी
जब से उनकी नज़र हो गयी
हर खुशी हमसफ़र हो गयी
राहे उल्फ़त में हर इक क़दम
मैं तेरी रहगुज़र हो गयी
उनको पा के भी पा न सके
हर दुआ बेअसर हो गयी
आज की शब भी तन्हा कटी
वो न आये सहर हो गयी
उनसे बिछडे तो ऐसा लगा
ज़िन्दगी मुख्तसिर हो गयी
उसने मेहफ़िल में रुस्वा किया
और मेरी आँख तर हो गयी
आप सब ने मुझे सुन लिया
शायरी मोतबर हो गयी
बात करती है सच्ची ‘निशा’
अब तो ये भी निडर हो गयी
– डॉ. नसीमा ‘निशा’
डॉ. नसीमा निशा जी की ग़ज़ल
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