दावा था राज करने का, जिनका जहान पर वो सो रहे हैं हार कर, अपने मकान पर जो लोग अपने आप को कहते थे सूरमां फूले हैं हाथ पाँव हक़ीक़त बयान पर सस्ता है आदमी का कलेजा खरीदिये ताज़ा हैं ख़ून लीजिये मेरी दुकान पर क्यों कल की फ़िक्र करें गवायें ये जान हम जो होगा, देख लेंगे, अभी हैं उठान पर मौका मिले तो सोचना मगरूर तुम कभी ऊंचाई पर चढ़े तो गिरोगे ढ़लान पर जो कुछ सुना औ देखा, सब झूठ हो गया कैसे करूँ भरोसा मैं, अब आँख कान पर बेटे बज़ा रहे हैं बंशी तो चैन की सोचेंगे क्यों भला वो, पिता की थकान पर – गोविन्द व्यथित गोविन्द व्यथित जी की ग़ज़ल [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दावा था राज करने का, जिनका जहान पर
दावा था राज करने का, जिनका जहान पर
वो सो रहे हैं हार कर, अपने मकान पर
जो लोग अपने आप को कहते थे सूरमां
फूले हैं हाथ पाँव हक़ीक़त बयान पर
सस्ता है आदमी का कलेजा खरीदिये
ताज़ा हैं ख़ून लीजिये मेरी दुकान पर
क्यों कल की फ़िक्र करें गवायें ये जान हम
जो होगा, देख लेंगे, अभी हैं उठान पर
मौका मिले तो सोचना मगरूर तुम कभी
ऊंचाई पर चढ़े तो गिरोगे ढ़लान पर
जो कुछ सुना औ देखा, सब झूठ हो गया
कैसे करूँ भरोसा मैं, अब आँख कान पर
बेटे बज़ा रहे हैं बंशी तो चैन की
सोचेंगे क्यों भला वो, पिता की थकान पर
– गोविन्द व्यथित
गोविन्द व्यथित जी की ग़ज़ल
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