दिल को मालूम है तू बस ख़्वाब ही है फिर क्यों तुझे पाने की ख़्वाहिश दबी सी है मीलों का फ़ासला है तेरे मेरे दरमियाँ फिर क्यों तुझे देखने की चाहत जगी सी है न तेरी ज़िंदगी में, न यादों में मेरा ठिकाना फिर क्यों तुझे याद कर आँख में नमी सी है जब से भूल गए तुम वो बातें वो फँसाने सासें तो चल रही पर ज़िंदगी रुकी सी है – एकता खान एकता खान जी की कविता एकता खान जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दिल को मालूम है
दिल को मालूम है तू बस ख़्वाब ही है
फिर क्यों तुझे पाने की ख़्वाहिश दबी सी है
मीलों का फ़ासला है तेरे मेरे दरमियाँ
फिर क्यों तुझे देखने की चाहत जगी सी है
न तेरी ज़िंदगी में, न यादों में मेरा ठिकाना
फिर क्यों तुझे याद कर आँख में नमी सी है
जब से भूल गए तुम वो बातें वो फँसाने
सासें तो चल रही पर ज़िंदगी रुकी सी है
– एकता खान
एकता खान जी की कविता
एकता खान जी की रचनाएँ
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