जज़्बे जो मेरे दिल में जगाये हुसैन ने मेरे क़लम से वो ही लिखाये हुसैन ने ख़ुश्बू महक रही है फ़ज़ाओं में आज भी कुछ फूल इस तरह के खिलाये हुसैन ने सदियाँ गुज़र गईं हैं मगर आज देखिये उभरे हैं जो नुकूश बनाये हुसैन ने दुनिया को इक चराग़ दिखाने के वास्ते सब दीप अपने घर के बुझाये हुसैन ने लहजे बदल-बदल के पुकारा है मौत को जीने के यूँ रमूज़ सिखाये हुसैन ने कश्ती भंवर से आज मेरी पार हो गई मेरी तरफ़ जो हाथ बढ़ाये हुसैन ने साग़र मेरे क़लम से वो लिख्खे नहीं गये जज़्बात जो भी अपने छुपाये हुसैन ने –विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की ग़ज़ल विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जज़्बे जो मेरे दिल में जगाये हुसैन ने
जज़्बे जो मेरे दिल में जगाये हुसैन ने
मेरे क़लम से वो ही लिखाये हुसैन ने
ख़ुश्बू महक रही है फ़ज़ाओं में आज भी
कुछ फूल इस तरह के खिलाये हुसैन ने
सदियाँ गुज़र गईं हैं मगर आज देखिये
उभरे हैं जो नुकूश बनाये हुसैन ने
दुनिया को इक चराग़ दिखाने के वास्ते
सब दीप अपने घर के बुझाये हुसैन ने
लहजे बदल-बदल के पुकारा है मौत को
जीने के यूँ रमूज़ सिखाये हुसैन ने
कश्ती भंवर से आज मेरी पार हो गई
मेरी तरफ़ जो हाथ बढ़ाये हुसैन ने
साग़र मेरे क़लम से वो लिख्खे नहीं गये
जज़्बात जो भी अपने छुपाये हुसैन ने
–विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की ग़ज़ल
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