दो पंक्ति में ही करे दोहा अपनी बात पोल सभी की खोलता देता सबको मात शब्दों से अनुबन्ध कर मीत रचो नव छन्द छन्द गति बढ़ती रहे कभी न हो ये मन्द उगता सूरज बन हँसा जब तक वो इन्सान आव भगत सबने करी दिया सभी ने मान टूट रहे अनुबन्ध सब भटक रहे सम्बन्ध कौन लिखे सदभाव के प्रीत-भरे नव छन्द इक पल भी फुरसत नहीं दौड़ रहा इन्सान मुखड़े पर दीखे नहीं थोड़ी भी मुस्कान क़दम क़दम पर आज है हँसता भ्रष्टाचार दूर इसे कैसे करें इस पर करो विचार जब तक कुर्सी पास है जग लागे गुलनार कुर्सी खसकी पास से जग लागे सब खार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दो पंक्ति में ही करे
दो पंक्ति में ही करे दोहा अपनी बात
पोल सभी की खोलता देता सबको मात
शब्दों से अनुबन्ध कर मीत रचो नव छन्द
छन्द गति बढ़ती रहे कभी न हो ये मन्द
उगता सूरज बन हँसा जब तक वो इन्सान
आव भगत सबने करी दिया सभी ने मान
टूट रहे अनुबन्ध सब भटक रहे सम्बन्ध
कौन लिखे सदभाव के प्रीत-भरे नव छन्द
इक पल भी फुरसत नहीं दौड़ रहा इन्सान
मुखड़े पर दीखे नहीं थोड़ी भी मुस्कान
क़दम क़दम पर आज है हँसता भ्रष्टाचार
दूर इसे कैसे करें इस पर करो विचार
जब तक कुर्सी पास है जग लागे गुलनार
कुर्सी खसकी पास से जग लागे सब खार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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