जब दौर-ए-नवाज़िश यूँ चलता रहा मेरे दिल में कुछ और मचलता रहा उसे भी लगी थी बहुत भूख पर निवाले वो अपने बदलता रहा उधर सरहदों पे वो गिरते रहे इधर ख़ूँ हमारा उबलता रहा बहुत ग़म ज़माने ने उसको दिये मेरे दर्द पर वो तड़पता रहा जब से मिले हो मेरे दोस्त तुम ख़ुद पे गुमाँ और होता रहा जो तुम ने दिये हैं उन अहसास से मेरा दिल अब ज़्यादा संभलता रहा – शाद उदयपुरी ‘शाद’ जी की नई रचनाओं को पढ़ने के लिए यहाँ फॉलो करें – दोस्ती पर शायरी हिन्दी में [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
दौर-ए-नवाज़िश
जब दौर-ए-नवाज़िश यूँ चलता रहा
मेरे दिल में कुछ और मचलता रहा
उसे भी लगी थी बहुत भूख पर
निवाले वो अपने बदलता रहा
उधर सरहदों पे वो गिरते रहे
इधर ख़ूँ हमारा उबलता रहा
बहुत ग़म ज़माने ने उसको दिये
मेरे दर्द पर वो तड़पता रहा
जब से मिले हो मेरे दोस्त तुम
ख़ुद पे गुमाँ और होता रहा
जो तुम ने दिये हैं उन अहसास से
मेरा दिल अब ज़्यादा संभलता रहा
– शाद उदयपुरी
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