जाने क्यों ना चाँदनी सो न सकी उस रात चन्दा ने हँसकर करी जब नदिया से बात नभ से बोली चाँदनी ऐसे मुझे न ताक देख लिया गर चाँद ने कट जायेगी नाक आज खड़ी घर द्वार पर गोरी कर श्रृंगार सजन खड़ा हो आड़ से उसको रहा निहार आँख मीच कर रहा सब पर वो विश्वास मुँह की ऐसी खायेगा, रुक जायेगा साँस रहता ऐसे वो यहाँ जैसे बड़ा नवाब बनिये का जो आज तक कर ना सका हिसाब अपने ही मुख से करे अपना ही गुणगान जैसे हम सब साथ के हैं मूरख इंसान आगे आगे चल रहा बनकर बब्बर शेर काम पड़ा तो देखना मुँह देगा वो फेर – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
जाने क्यों ना चाँदनी सो
जाने क्यों ना चाँदनी सो न सकी उस रात
चन्दा ने हँसकर करी जब नदिया से बात
नभ से बोली चाँदनी ऐसे मुझे न ताक
देख लिया गर चाँद ने कट जायेगी नाक
आज खड़ी घर द्वार पर गोरी कर श्रृंगार
सजन खड़ा हो आड़ से उसको रहा निहार
आँख मीच कर रहा सब पर वो विश्वास
मुँह की ऐसी खायेगा, रुक जायेगा साँस
रहता ऐसे वो यहाँ जैसे बड़ा नवाब
बनिये का जो आज तक कर ना सका हिसाब
अपने ही मुख से करे अपना ही गुणगान
जैसे हम सब साथ के हैं मूरख इंसान
आगे आगे चल रहा बनकर बब्बर शेर
काम पड़ा तो देखना मुँह देगा वो फेर
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
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