आती रही दुश्वारियाँ सजी रही क्यारियाँ वक्त हमें सिखाता रहा करते रहे नादानियाँ अपने हाथ में परवरिश बुलाते रहे बीमारियाँ चौंक गए मुसीबत में की नहीं तैयारियां महक रहा चमन आज वीरों ने दी कुर्बानियां करना था जो किया नहीं झेल रहे परेशानियां दाल में कुछ काला है कर रहा मेहरबानियां याद करते उसे सभी छोड़ गया निशानियां मेला था चारों ओर कैसे सहें तनहाइयाँ नज़रअंदाज की हर बात को वो करता रहा गुस्ताखियां अपाहिज बनाया उसने पकड़ा रहा बैसाखियाँ माँ भारती पुकार रही सुना रहा कहानियां “श्याम” जीते सब अपने लिए सवांर कुछ जिन्दगियाँ – एस डी मठपाल [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
आती रही दुश्वारियाँ, सजी रही क्यारियाँ
आती रही दुश्वारियाँ
सजी रही क्यारियाँ
वक्त हमें सिखाता रहा
करते रहे नादानियाँ
अपने हाथ में परवरिश
बुलाते रहे बीमारियाँ
चौंक गए मुसीबत में
की नहीं तैयारियां
महक रहा चमन आज
वीरों ने दी कुर्बानियां
करना था जो किया नहीं
झेल रहे परेशानियां
दाल में कुछ काला है
कर रहा मेहरबानियां
याद करते उसे सभी
छोड़ गया निशानियां
मेला था चारों ओर
कैसे सहें तनहाइयाँ
नज़रअंदाज की हर बात को
वो करता रहा गुस्ताखियां
अपाहिज बनाया उसने
पकड़ा रहा बैसाखियाँ
माँ भारती पुकार रही
सुना रहा कहानियां
“श्याम” जीते सब अपने लिए
सवांर कुछ जिन्दगियाँ
– एस डी मठपाल
[simple-author-box]
अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें