हाँ अहसास है मुझे
कि आसपास हो तुम,
हाँ, इकरार है मुझे
कि कुछ खास हो तुम।
ज़िन्दगी की भागमभाग में,
एक सुकून भरा
विश्राम हो तुम।
थक कर चूर हुई
निढाल सी दोपहर में,
ठंडी झोपड़ी सा
आराम हो तुम।
हा यक़ीन है मुझे
मेरी चाहत हो तुम,
हाँ, भरोसा है मुझे
मेरी राहत हो तुम।
परेशानियों की दस्तक में,
ख़ुशियों भरी आहट हो तुम।
ज़िन्दगी की बेबस बंदिशो को
मिली है अनायास ही,
वो इज़ाज़त हो तुम।
हाँ, स्वीकार है मुझे,
ख़्वाबों के कुहासे में
धुंधला सा अक्स हो तुम,
हाँ प्यार है मुझे जिससे
अनदेखे अनजाने से
वही शख़्स हो तुम।
सुबह की पहली दुआ,
शाम की प्रार्थना
मेरी अरदासों की
मधुर तान हो तुम
जो है अधूरा
औऱ रहेगा अधूरा,
हृदय में छुपा छुपा सा,
वो अरमान हो तुम।
हाँ अहसास है मुझे कि आसपास हो तुम
हाँ अहसास है मुझे
कि आसपास हो तुम,
हाँ, इकरार है मुझे
कि कुछ खास हो तुम।
ज़िन्दगी की भागमभाग में,
एक सुकून भरा
विश्राम हो तुम।
थक कर चूर हुई
निढाल सी दोपहर में,
ठंडी झोपड़ी सा
आराम हो तुम।
हा यक़ीन है मुझे
मेरी चाहत हो तुम,
हाँ, भरोसा है मुझे
मेरी राहत हो तुम।
परेशानियों की दस्तक में,
ख़ुशियों भरी आहट हो तुम।
ज़िन्दगी की बेबस बंदिशो को
मिली है अनायास ही,
वो इज़ाज़त हो तुम।
हाँ, स्वीकार है मुझे,
ख़्वाबों के कुहासे में
धुंधला सा अक्स हो तुम,
हाँ प्यार है मुझे जिससे
अनदेखे अनजाने से
वही शख़्स हो तुम।
सुबह की पहली दुआ,
शाम की प्रार्थना
मेरी अरदासों की
मधुर तान हो तुम
जो है अधूरा
औऱ रहेगा अधूरा,
हृदय में छुपा छुपा सा,
वो अरमान हो तुम।
– दीपा पंत ‘शीतल’
इज़हार पर कविता हिंदी में
कवयित्री दीपा पन्त 'शीतल' जी की कविताएँ
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