एक कहे शैतान है एक कहे इंसान उसके असली रूप की कैसे हो पहचान आज समय की चाल ने बदला अपना रंग सोच समझ कर पैर रख बजा संभलकर चंग मैंने जब तेरा किया सच्चे मन से ध्यान भाग गया जाने कहाँ अन्दर का शैतान अन्तर्मन को छू गए जब मेरे जज़्बात शब्द सभी करने लगे छन्दों की बरसात सपने सब नाराज़ हो चले गए चुपचाप और खड़ा सुनता रहा मैं उनकी पदचाप एक नज़र में हो गई होनी थी जो बात भोर किरण हँसने लगी बदल गए हालात खुद को तो जाना नहीं खुद से है अनजान जीवन भर करता रहा दूजों की पहचान – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
एक कहे शैतान है
एक कहे शैतान है एक कहे इंसान
उसके असली रूप की कैसे हो पहचान
आज समय की चाल ने बदला अपना रंग
सोच समझ कर पैर रख बजा संभलकर चंग
मैंने जब तेरा किया सच्चे मन से ध्यान
भाग गया जाने कहाँ अन्दर का शैतान
अन्तर्मन को छू गए जब मेरे जज़्बात
शब्द सभी करने लगे छन्दों की बरसात
सपने सब नाराज़ हो चले गए चुपचाप
और खड़ा सुनता रहा मैं उनकी पदचाप
एक नज़र में हो गई होनी थी जो बात
भोर किरण हँसने लगी बदल गए हालात
खुद को तो जाना नहीं खुद से है अनजान
जीवन भर करता रहा दूजों की पहचान
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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