घर परिवार गाँव छोड़ बसे परप्रान्त,
मजदूरी कर रोजी अपनी कमाते हैं।
कायरों का झुंड लिए धूर्तता के ठेकेदार,
कर्मवीर श्रमिकों को खतरा बताते हैं।
क्षेत्रवाद का ज़हर घोलते जो लाभ देख,
सत्तालोभी साथ खड़े उनको बचाते हैं।
पकती है दाल रोटी जिनके पसीने से ही,
भूल उपकार सभी उनको भगाते हैं।।
घर ग्रस्थि पर कविता
घर परिवार गाँव छोड़ बसे परप्रान्त,
मजदूरी कर रोजी अपनी कमाते हैं।
कायरों का झुंड लिए धूर्तता के ठेकेदार,
कर्मवीर श्रमिकों को खतरा बताते हैं।
क्षेत्रवाद का ज़हर घोलते जो लाभ देख,
सत्तालोभी साथ खड़े उनको बचाते हैं।
पकती है दाल रोटी जिनके पसीने से ही,
भूल उपकार सभी उनको भगाते हैं।।
–अवधेश कुमार रजत
अवधेश कुमार 'रजत' जी की कविता
अवधेश कुमार 'रजत' जी की रचनाएँ
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