पिछली साल शहर की सड़को ने
वादा किया मुझ से गाँव ले जाने का
मगर सड़क खुद ब खुद ही कटकर
वही खत्म हो गई शहर की युद्ध भूमि में
मैं पड़ा रहा रक्त रंजित गाँव लेकर
शहर की यादगार भूमि में
गाँव का अकशुल यौद्धा बनकर
शहर एक मतलबी टापू निकला
जो बेमतलबी पानी… के घेरे में है
जहाँ से आप जा नहीं सकते…
बिना जुर्म से भीगे…
शहर का कोई भी रास्ता नही जाता गाँव
मगर गाँव के सारे रास्ते जाते हैं शहर
शहर की जिद्द से निकला मुसाफिर
कभी नही पहुच सकता गाँव की मंजिल
मगर यकीनन वो पहुँचेगा एक दिन अग्रिम आत्महत्या की ओर
गत साल भ्रमित इच्छाओं से निवेदन
किया गाँव के लिए
मगर वो मुझे ले गयी….
बेलिबास जिस्मों के स्टेशनों की ओर
मसालेदार एककोशकीय चाउमीन की ओर
ठंड के इजाफे से जमी आईसक्रीमों के परिवेश में
एक सजे सँवरे नशीले शहर की अश्लील
पदार्थों की ओर
मगर नही ले गई उस गाँव की ओर
जहाँ दो आत्माऐं कर रही थी मेरा बचपन -विमर्श
मैंने मान लिया
शहर की तड़क भड़क लाईटे खा गई …मेरे
गाँव का मासूम सूरज का पागल उजाला
रफ्तारी गाड़िया कुचल गई मेरे गाँव की
बैलगाड़ियां
शहर की एक प्रदुष्ण विचलित हवा सोख
गई….मेरे गाँव की असली अलबेली हवा
शहर की डबल रोटियां निगल गई
गाँव का साबूत धान
मैं अब शहर का टिमटिमता अताराकिंत तारा हूँ
जो गाँव के दमदमाते सूरज को छोड़कर
शहर के मलिन धूमिल अम्बर में
भटक रहा हूँ
मैं शहर के धोखे टुकर टुकर खा रहा हूँ
बिना किसी झल्लाहट के…पेट के इशारे पर,
मेरा समय अब गाँव के ग्रीनविच से नही मिल रहा हैं …
मैं खो चुका हूँ शायद गलत देशांतर के
गड़बड़ गोलार्द्ध में
गुमशुदा शहर का वाशिंदा
पिछली साल शहर की सड़को ने
वादा किया मुझ से गाँव ले जाने का
मगर सड़क खुद ब खुद ही कटकर
वही खत्म हो गई शहर की युद्ध भूमि में
मैं पड़ा रहा रक्त रंजित गाँव लेकर
शहर की यादगार भूमि में
गाँव का अकशुल यौद्धा बनकर
शहर एक मतलबी टापू निकला
जो बेमतलबी पानी… के घेरे में है
जहाँ से आप जा नहीं सकते…
बिना जुर्म से भीगे…
शहर का कोई भी रास्ता नही जाता गाँव
मगर गाँव के सारे रास्ते जाते हैं शहर
शहर की जिद्द से निकला मुसाफिर
कभी नही पहुच सकता गाँव की मंजिल
मगर यकीनन वो पहुँचेगा एक दिन अग्रिम आत्महत्या की ओर
गत साल भ्रमित इच्छाओं से निवेदन
किया गाँव के लिए
मगर वो मुझे ले गयी….
बेलिबास जिस्मों के स्टेशनों की ओर
मसालेदार एककोशकीय चाउमीन की ओर
ठंड के इजाफे से जमी आईसक्रीमों के परिवेश में
एक सजे सँवरे नशीले शहर की अश्लील
पदार्थों की ओर
मगर नही ले गई उस गाँव की ओर
जहाँ दो आत्माऐं कर रही थी मेरा बचपन -विमर्श
मैंने मान लिया
शहर की तड़क भड़क लाईटे खा गई …मेरे
गाँव का मासूम सूरज का पागल उजाला
रफ्तारी गाड़िया कुचल गई मेरे गाँव की
बैलगाड़ियां
शहर की एक प्रदुष्ण विचलित हवा सोख
गई….मेरे गाँव की असली अलबेली हवा
शहर की डबल रोटियां निगल गई
गाँव का साबूत धान
मैं अब शहर का टिमटिमता अताराकिंत तारा हूँ
जो गाँव के दमदमाते सूरज को छोड़कर
शहर के मलिन धूमिल अम्बर में
भटक रहा हूँ
मैं शहर के धोखे टुकर टुकर खा रहा हूँ
बिना किसी झल्लाहट के…पेट के इशारे पर,
मेरा समय अब गाँव के ग्रीनविच से नही मिल रहा हैं …
मैं खो चुका हूँ शायद गलत देशांतर के
गड़बड़ गोलार्द्ध में
– बिलाल पठान ‘वास्कोडिगामा’
बिलाल पठान जी की प्रमुख रचनाएँ
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