हर तरफ हैं आजकल वर साजिशें भेद वाली हो रही हैं बारिशें हाल मौसम का बात पाते नहीं सुर्ख फूलों की जगह हैं आतिशें झील मन की अब कहो कैसे भरे बांधने की धार को हैं कोशिशें खेत उपजें और मिले बहती नदी मन में शायद जाऐगी ये ख्वाहिशें जाल बुन लो लाख या पहरे रखो तोड़ डालेंगे सभी हम बन्दिशें रुख़ सियासत का हुआ “इक़बाल” क्या राज करती हैं दिलों में रंजिशें – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हर तरफ हैं आजकल वर साजिशें
हर तरफ हैं आजकल वर साजिशें
भेद वाली हो रही हैं बारिशें
हाल मौसम का बात पाते नहीं
सुर्ख फूलों की जगह हैं आतिशें
झील मन की अब कहो कैसे भरे
बांधने की धार को हैं कोशिशें
खेत उपजें और मिले बहती नदी
मन में शायद जाऐगी ये ख्वाहिशें
जाल बुन लो लाख या पहरे रखो
तोड़ डालेंगे सभी हम बन्दिशें
रुख़ सियासत का हुआ “इक़बाल” क्या
राज करती हैं दिलों में रंजिशें
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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