हम जैसे दीवानों से ना उलझो नादानों तूफानों से ना उलझो पराऐ हाथ जलने-बुझने वालो जाओ जी परवानों से ना उलझो सुन लेना ए घाटी गली गुफाओं हम बिखरे दालानो से ना उलझो खैर मनाओ दिन चार गुलों बुलबुलों इन बहके वीरानों से ना उलझो जरदारो से कोई हर्ज़ नहीं है हिम्मत के धनवानों से ना उलझो खेल बहुत हैं आप खेलो प्यार से मुफलिस के अरमानों से ना उलझो पोचे झूठों पर तुम दाव चलाओ पर पक्के इंसानों से ना उलझो जाम सुराही तक हद अपनी रखो घर जाओ मयखानो से ना उलझो ये तुमको अपमानित ना करवा दें बेमानी सम्मानों से ना उलझो – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हम जैसे दीवानों
हम जैसे दीवानों से ना उलझो
नादानों तूफानों से ना उलझो
पराऐ हाथ जलने-बुझने वालो
जाओ जी परवानों से ना उलझो
सुन लेना ए घाटी गली गुफाओं
हम बिखरे दालानो से ना उलझो
खैर मनाओ दिन चार गुलों बुलबुलों
इन बहके वीरानों से ना उलझो
जरदारो से कोई हर्ज़ नहीं है
हिम्मत के धनवानों से ना उलझो
खेल बहुत हैं आप खेलो प्यार से
मुफलिस के अरमानों से ना उलझो
पोचे झूठों पर तुम दाव चलाओ
पर पक्के इंसानों से ना उलझो
जाम सुराही तक हद अपनी रखो
घर जाओ मयखानो से ना उलझो
ये तुमको अपमानित ना करवा दें
बेमानी सम्मानों से ना उलझो
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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