हमसफर कोई नहीं हमदम नहीं गर नहीं तो ना सही कुछ गम नहीं देख लेना दूर से मुड़ कर हमें और सब मिल जाएगें पर हम नहीं आपने तोड़ा हमें अच्छा किया आसरा ये जिन्दगी को कम नहीं दर्द के सागर मिले आठों पहर आँख फिर भी देखिये ये नम नहीं बस भरोसा ज़ात पर उसकी रखो जुल्मतें रह पाऐंगी हर दम नहीं छेड़ना ना शौक को साकी मेरे पीने पे आया तो फिर कम कम नहीं हर जबां “इक़बाल” भी जाने मगर है तक़ाज़ा जर्फ़ का बेदम नहीं उजियारे कोई तो स्याह कर गया और कोई स्याही में जिया भर गया आफ़ताबो क़मर दंग हुवे देख कर लाख रोशन गिरों के दीया सर गया शोर बरपा हुआ मेहफ़िले गौर में नाम मर्द मुजाहिद गया कर गया उस फिरंगी के साए तले खौफ था हाथ में जब तिरंगा लिया डर गया – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
हमसफर कोई नहीं हमदम नहीं
हमसफर कोई नहीं हमदम नहीं
गर नहीं तो ना सही कुछ गम नहीं
देख लेना दूर से मुड़ कर हमें
और सब मिल जाएगें पर हम नहीं
आपने तोड़ा हमें अच्छा किया
आसरा ये जिन्दगी को कम नहीं
दर्द के सागर मिले आठों पहर
आँख फिर भी देखिये ये नम नहीं
बस भरोसा ज़ात पर उसकी रखो
जुल्मतें रह पाऐंगी हर दम नहीं
छेड़ना ना शौक को साकी मेरे
पीने पे आया तो फिर कम कम नहीं
हर जबां “इक़बाल” भी जाने मगर
है तक़ाज़ा जर्फ़ का बेदम नहीं
उजियारे कोई तो स्याह कर गया
और कोई स्याही में जिया भर गया
आफ़ताबो क़मर दंग हुवे देख कर
लाख रोशन गिरों के दीया सर गया
शोर बरपा हुआ मेहफ़िले गौर में
नाम मर्द मुजाहिद गया कर गया
उस फिरंगी के साए तले खौफ था
हाथ में जब तिरंगा लिया डर गया
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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