मैं भी बुलाऊँ तुम भी बुलाना हुसैन को कि याद कर रहा है ज़माना हुसैन को समझा नहीं यजीद यक़ीनन ये फलसफा करबल से दूर दूर था जाना हुसैन को मसक़न तो उनका सिर्फ़ है ईराक में मगर हर दिल में मिल गया है ठिकाना हुसैन को सर पर खड़ी हैं ग़म की घटाएं तो क्या हुआ बिरद-ए-ज़ुबान दिल तू बनाना हुसैन को मैंने भी आज अपनी ये नींदों से कह दिया तुम रोज़-रोज़ ख़्वाब में लाना हुसैन को मेरे तो सारे दर्दो – अलम दूर कर दिये ज़ख़्मों को अपने तुम भी दिखाना हुसैन को यह हो रही है चारों दिशाओं में गुफ़्तगू साग़र के घर भी आज है आना हुसैन को –विनय साग़र जायसवाल विनय साग़र जायसवाल जी की ग़ज़ल विनय साग़र जायसवाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मैं भी बुलाऊँ तुम भी बुलाना हुसैन को
मैं भी बुलाऊँ तुम भी बुलाना हुसैन को
कि याद कर रहा है ज़माना हुसैन को
समझा नहीं यजीद यक़ीनन ये फलसफा
करबल से दूर दूर था जाना हुसैन को
मसक़न तो उनका सिर्फ़ है ईराक में मगर
हर दिल में मिल गया है ठिकाना हुसैन को
सर पर खड़ी हैं ग़म की घटाएं तो क्या हुआ
बिरद-ए-ज़ुबान दिल तू बनाना हुसैन को
मैंने भी आज अपनी ये नींदों से कह दिया
तुम रोज़-रोज़ ख़्वाब में लाना हुसैन को
मेरे तो सारे दर्दो – अलम दूर कर दिये
ज़ख़्मों को अपने तुम भी दिखाना हुसैन को
यह हो रही है चारों दिशाओं में गुफ़्तगू
साग़र के घर भी आज है आना हुसैन को
–विनय साग़र जायसवाल
विनय साग़र जायसवाल जी की ग़ज़ल
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