इन्द्रधनुषी रंग से तुमने लिखा है तितलियों के पंख पर इतिहास मेरा सांस का पतझार नैनों में समेटे जल रहा है रात भर मधुमास मेरा ये खड़ा आकाश तुमको जानता है और ये सागर तुम्हें पहचानता है एक वकिम नैन से घायल हुआ सिसकता मधुमास तुमको जानता है अब न कोई रागिनी फिर बज सकेगी अब न कोई बासुरी फिर बज सकेगी अब कोई काँधा न उन्मन रह सकेगा अब न कोई राधिका फिर सज सकेगी चित्र मैं तेरा बनाना चाहता हूँ रूप का सम्मान करना चाहता हूँ बेवसी का ओढ़कर शाश्वत कफन भीड़ में गुमनाम होना चाहता हूँ तुम चली जाना मगर ठहरो, कि इतना वख्त दे दो चित्र मैं तेरा बनालूँ फिर चली जाना वेदना को राह दे लूँ फिर चली जाना – देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’ देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
इन्द्रधनुषी रंग से
इन्द्रधनुषी रंग से तुमने लिखा है
तितलियों के पंख पर इतिहास मेरा
सांस का पतझार नैनों में समेटे
जल रहा है रात भर मधुमास मेरा
ये खड़ा आकाश तुमको जानता है
और ये सागर तुम्हें पहचानता है
एक वकिम नैन से घायल हुआ
सिसकता मधुमास तुमको जानता है
अब न कोई रागिनी फिर बज सकेगी
अब न कोई बासुरी फिर बज सकेगी
अब कोई काँधा न उन्मन रह सकेगा
अब न कोई राधिका फिर सज सकेगी
चित्र मैं तेरा बनाना चाहता हूँ
रूप का सम्मान करना चाहता हूँ
बेवसी का ओढ़कर शाश्वत कफन
भीड़ में गुमनाम होना चाहता हूँ
तुम चली जाना
मगर ठहरो, कि इतना वख्त दे दो
चित्र मैं तेरा बनालूँ
फिर चली जाना
वेदना को राह दे लूँ
फिर चली जाना
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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