इंतज़ार न जाने कब से बिना कुछ कहे एक-दूसरे का आकाश का तड़पना धरती के लिए धरती की बेताबी आकाश की ख़ातिर बरसात जल-जले सैलाब फट जाना कई बार बादलों का दोनों का तड़पना मचलना एक-दूसरे के लिये कौन समझ पाया है इन के जज़्बात जो जानते हैं इनका दर्द वो कभी नहीं करते इनके मिलने की दुआ | – इरशाद अज़ीज़ इरशाद अज़ीज़ जी की कविता इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
इंतज़ार न जाने कब से
इंतज़ार
न जाने कब से
बिना कुछ कहे
एक-दूसरे का
आकाश का तड़पना
धरती के लिए
धरती की बेताबी
आकाश की ख़ातिर
बरसात
जल-जले
सैलाब
फट जाना कई बार
बादलों का
दोनों का तड़पना
मचलना एक-दूसरे के लिये
कौन समझ पाया है
इन के जज़्बात
जो जानते हैं
इनका दर्द
वो कभी नहीं करते
इनके मिलने की दुआ |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की कविता
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