शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर माँ!मुझको वो पथ दिखा, जिस पथ चला कबीर मन्दिर मस्ज़िद के लिए, करते दो दो हाथ मदिरालय में बैठकर, दोनों पीते साथ सार रहित उस बात को, कभी न दो विस्तार जो जग और समाज का, कर न सके उपकार रब के घर केवल मिले, शुभ कर्मों का दाम यश वैभव धन सम्पदा, वहाँ न आये काम –जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की कविता जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर
शब्दों में डूबा रहूँ, ऐसी दे तासीर
माँ!मुझको वो पथ दिखा, जिस पथ चला कबीर
मन्दिर मस्ज़िद के लिए, करते दो दो हाथ
मदिरालय में बैठकर, दोनों पीते साथ
सार रहित उस बात को, कभी न दो विस्तार
जो जग और समाज का, कर न सके उपकार
रब के घर केवल मिले, शुभ कर्मों का दाम
यश वैभव धन सम्पदा, वहाँ न आये काम
–जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की कविता
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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