उसकी ख़ामोशी पे
कविता
गीत
ग़ज़ल
कैसे लिखूं
न जाने क्या-क्या है
उसके दिल में
मैं आख़िर
सोचूं भी तो क्या
उसकी ख़ामोशी जब टूटेगी
वो जब भी मुस्कराएगी
उसकी हर बात का मतलब
दुनिया अलग लगाएगी
उसका देखना क़यामत
उसका चलना क़यामत
उसका बोलना क़यामत
न जाने कितनी क़यामतें टूटती हैं
उस पे हर दिन
कितनी सदियों से
हर बार उसे ही
देनी पड़ती है
अगिन-परीक्षा
ज़िन्दगी से हारे लोगों के सामने
फिर भी वो
अपनी ख़ामोशी की चादर में
हर दौर की बेशर्म होती
तहज़ीब को छुपा लेती है
धो देती है
अपने आंसुओं से
सभ्यताओं के दाग़
उठा लेती है
अपने ही रिश्तों के
इल्ज़ाम चुप-चाप
मैं क्या बोलूं
मैं क्या लिखूं
सच तो है
इस दुनिया में
वो ही जीवन का संगीत है
उसका होना
गीत
ग़ज़ल है
और कविता है वो ही
उसको पढ़ना जैसे अदब है
उसको समझना एक हुनर |
उसकी ख़ामोशी पे
उसकी ख़ामोशी पे
कविता
गीत
ग़ज़ल
कैसे लिखूं
न जाने क्या-क्या है
उसके दिल में
मैं आख़िर
सोचूं भी तो क्या
उसकी ख़ामोशी जब टूटेगी
वो जब भी मुस्कराएगी
उसकी हर बात का मतलब
दुनिया अलग लगाएगी
उसका देखना क़यामत
उसका चलना क़यामत
उसका बोलना क़यामत
न जाने कितनी क़यामतें टूटती हैं
उस पे हर दिन
कितनी सदियों से
हर बार उसे ही
देनी पड़ती है
अगिन-परीक्षा
ज़िन्दगी से हारे लोगों के सामने
फिर भी वो
अपनी ख़ामोशी की चादर में
हर दौर की बेशर्म होती
तहज़ीब को छुपा लेती है
धो देती है
अपने आंसुओं से
सभ्यताओं के दाग़
उठा लेती है
अपने ही रिश्तों के
इल्ज़ाम चुप-चाप
मैं क्या बोलूं
मैं क्या लिखूं
सच तो है
इस दुनिया में
वो ही जीवन का संगीत है
उसका होना
गीत
ग़ज़ल है
और कविता है वो ही
उसको पढ़ना जैसे अदब है
उसको समझना एक हुनर |
– इरशाद अज़ीज़
इरशाद अज़ीज़ जी की रचनाएँ
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