कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो कहाँ जा रहे हो बचाकर ये दामन ज़रा पास आओ नज़र भर तो देखो बजायेंगे ताली सभी देखना तुम बहर में ग़ज़ल कोई कहकर तो देखो रकी़बों से मिलकर मिलेगा न कुछ भी रफीकों से दिल कुछ लगाकर तो देखो अंधरों ने जिनका जलाया है दामन कभी झाँककर उनके भीतर तो देखो किनारे पे रहकर मिलेंगे न मोती ज़रा गहरे उतरो समन्दर तो देखो – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी के ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कभी घर से बाहर
कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो
ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
कहाँ जा रहे हो बचाकर ये दामन
ज़रा पास आओ नज़र भर तो देखो
बजायेंगे ताली सभी देखना तुम
बहर में ग़ज़ल कोई कहकर तो देखो
रकी़बों से मिलकर मिलेगा न कुछ भी
रफीकों से दिल कुछ लगाकर तो देखो
अंधरों ने जिनका जलाया है दामन
कभी झाँककर उनके भीतर तो देखो
किनारे पे रहकर मिलेंगे न मोती
ज़रा गहरे उतरो समन्दर तो देखो
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी के ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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