कहीं से रोशनी लाओ
बहुत अंधेरा है
यहाँ हर काफिले संग
जुगनुओं का डेरा है
भाषण की रोटी खाने से
पेट किसी का नहीं भरा है
आश्वासन की फटी लगोटी
देह किसी का नहीं ढका है
शतरंजी मोहरे बिछाकर
बैठे हैं रहनुमा हमारे
जैसे बगुला दम साधे हो
ध्यान लगाये नदी किनारे
विछाये जाल अन्देखे
चतुर मछेरा है
कहीं से रोशनी लाओ
बहुत अंधेरा है
साँय साँय करता है मरघट
सन्नाटा क्यों सिहर रहा है
विन व्याही बेटी सिर पर है
सारा जीवन बिखर रहा है
सभी प्रलोभन वादे नुस्खे
सब बेकार हुये अनजाने
अपना बोझ कठिन लगता है
सिमटे बैठे सब सिरहाने
जरा सा होश में आओ
तमस घनेरा है
कहीं से रोशनी लाओ
बहुत अंधेरा है |
कहीं से रोशनी लाओ
कहीं से रोशनी लाओ
बहुत अंधेरा है
यहाँ हर काफिले संग
जुगनुओं का डेरा है
भाषण की रोटी खाने से
पेट किसी का नहीं भरा है
आश्वासन की फटी लगोटी
देह किसी का नहीं ढका है
शतरंजी मोहरे बिछाकर
बैठे हैं रहनुमा हमारे
जैसे बगुला दम साधे हो
ध्यान लगाये नदी किनारे
विछाये जाल अन्देखे
चतुर मछेरा है
कहीं से रोशनी लाओ
बहुत अंधेरा है
साँय साँय करता है मरघट
सन्नाटा क्यों सिहर रहा है
विन व्याही बेटी सिर पर है
सारा जीवन बिखर रहा है
सभी प्रलोभन वादे नुस्खे
सब बेकार हुये अनजाने
अपना बोझ कठिन लगता है
सिमटे बैठे सब सिरहाने
जरा सा होश में आओ
तमस घनेरा है
कहीं से रोशनी लाओ
बहुत अंधेरा है |
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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