तोड़ सभी सीमा के बन्धन
करते हैं सहास अभिनन्दन
भीतर कुछ है बाहर कुछ है
छल छदमों के ऊपर बन्दन
चेहरे सबके पास कई हैं
हर छण बदल बदल जाता है
घड़ियाली आसू की खेती
मन का भाव पिघल जाता है
कितने अनजाने हैं लोग |
कितने दीवाने हैं लोग ||
ढूढ़ रहा हूँ ऐसा चेहरा
कोई भी जो बेनकाब हो
बाहर भीतर एक रूप हो
खुली हुयी हर पल किताब हो
अन्धेरे में कैद रोशनी
आँसू भरी कथा कहती है
एक किरन की आशा लेकर
कितनी कठिन व्यथा सहती है
कितने अनजाने हैं लोग
कितने अनजाने हैं लोग |
कितने दीवाने हैं लोग ||
तोड़ सभी सीमा के बन्धन
करते हैं सहास अभिनन्दन
भीतर कुछ है बाहर कुछ है
छल छदमों के ऊपर बन्दन
चेहरे सबके पास कई हैं
हर छण बदल बदल जाता है
घड़ियाली आसू की खेती
मन का भाव पिघल जाता है
कितने अनजाने हैं लोग |
कितने दीवाने हैं लोग ||
ढूढ़ रहा हूँ ऐसा चेहरा
कोई भी जो बेनकाब हो
बाहर भीतर एक रूप हो
खुली हुयी हर पल किताब हो
अन्धेरे में कैद रोशनी
आँसू भरी कथा कहती है
एक किरन की आशा लेकर
कितनी कठिन व्यथा सहती है
ऐसे दीवाने हैं लोग
कितने अनजाने हैं लोग
– देवेन्द्र कुमार सिंह ‘दददा’
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की कविता
देवेंद्र कुमार सिंह दद्दा जी की रचनाएँ
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