कुछ तो अपनी बात कर कुछ सुन मेरी बात ऐसे ही कट जायेगी अपनी काली रात बस उसकी अरदास कर नहीं बहा यूँ नीर दुख बदली छंट जायेगी थोड़ा तो रख धीर घर – नारी को पीटता, कैसा है इंसान पर नारी को दे रहा देखो ! कितना मान साथ रोज आता यहां पी जाता है चाय पैसे देने के समय छू मंतर हो जाय मूरख को रख साथ में मानेगा हर बात समझदार मत साथ रख खा जायेगा मात समय बीतता जा रहा होने को है शाम एक पल भी नहीं मिला जीवन में आराम कुछ तो ऐसा लिख नया जिसमें हो कुछ सार सपनों को जो दे सके, इक निश्चित आकार – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
कुछ तो अपनी बात कर
कुछ तो अपनी बात कर कुछ सुन मेरी बात
ऐसे ही कट जायेगी अपनी काली रात
बस उसकी अरदास कर नहीं बहा यूँ नीर
दुख बदली छंट जायेगी थोड़ा तो रख धीर
घर – नारी को पीटता, कैसा है इंसान
पर नारी को दे रहा देखो ! कितना मान
साथ रोज आता यहां पी जाता है चाय
पैसे देने के समय छू मंतर हो जाय
मूरख को रख साथ में मानेगा हर बात
समझदार मत साथ रख खा जायेगा मात
समय बीतता जा रहा होने को है शाम
एक पल भी नहीं मिला जीवन में आराम
कुछ तो ऐसा लिख नया जिसमें हो कुछ सार
सपनों को जो दे सके, इक निश्चित आकार
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की ग़ज़ल
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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