लड़ ज़माने से जिगर पैदा कर मेहनत करके हुनर पैदा कर मंज़िलें तुझको मिलेंगी आख़िर हिम्मतों से वो डगर पैदा कर दौड़ में तू ही यहाँ जीतेगा हौसलों में वो लहर पैदा कर सुर्खियों में तब रहेगा मुमकिन बेहतर कोई ख़बर पैदा कर बात तेरी तब सुनेगी दुनियाँ बात में अपनी असर पैदा कर इश्क़ में दिल टूटना तो तय है तू मुहब्बत ही मगर पैदा कर बेहतर तालीम ही देनी है अंश को अपने अगर पैदा कर परखना चाहो अगर हीरे को ‘शाद’ के जैसी नज़र पैदा कर – शाद उदयपुरी शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
लड़ ज़माने से
लड़ ज़माने से जिगर पैदा कर
मेहनत करके हुनर पैदा कर
मंज़िलें तुझको मिलेंगी आख़िर
हिम्मतों से वो डगर पैदा कर
दौड़ में तू ही यहाँ जीतेगा
हौसलों में वो लहर पैदा कर
सुर्खियों में तब रहेगा मुमकिन
बेहतर कोई ख़बर पैदा कर
बात तेरी तब सुनेगी दुनियाँ
बात में अपनी असर पैदा कर
इश्क़ में दिल टूटना तो तय है
तू मुहब्बत ही मगर पैदा कर
बेहतर तालीम ही देनी है
अंश को अपने अगर पैदा कर
परखना चाहो अगर हीरे को
‘शाद’ के जैसी नज़र पैदा कर
– शाद उदयपुरी
शाद उदयपुरी जी की ग़ज़ल
शाद उदयपुरी जी की रचनाएँ
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