इंसान और इंसान के बीच लकीरे खींचा करते हैं, घमंड के बीज को झूठी शान से सींचा करते हैं। मुंह बना कर रखते, बड़ी मुश्किल से हंसा करते हैं, लगता है लोग आजकल ईगो का नशा करते हैं। गिद्ध और बाज तो ऊंचे ठिकानो पर बसा करते हैं, नादान परिंदे ही शिकारी के जाल में फंसा करते है। छिछले दरिया ही अपने पर बहुत गुमां करते है, समंदर तो अपनी मौजों मे चुपचाप रहा करते है। – पी एल बामनिया पी एल बामनिया जी की कविता [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
इंसान और इंसान के बीच लकीरे खींचा करते हैं
इंसान और इंसान के बीच लकीरे खींचा करते हैं,
घमंड के बीज को झूठी शान से सींचा करते हैं।
मुंह बना कर रखते, बड़ी मुश्किल से हंसा करते हैं,
लगता है लोग आजकल ईगो का नशा करते हैं।
गिद्ध और बाज तो ऊंचे ठिकानो पर बसा करते हैं,
नादान परिंदे ही शिकारी के जाल में फंसा करते है।
छिछले दरिया ही अपने पर बहुत गुमां करते है,
समंदर तो अपनी मौजों मे चुपचाप रहा करते है।
– पी एल बामनिया
पी एल बामनिया जी की कविता
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