गगन सा तुम्हारा ह्रदय है सब रागों की तुममें लय है तुमको सिर्फ भोग्या माना देखो अब कितना प्रलय है गुलाब -चमेली तुममें समाहित गंगा-जमना तुमसे प्रवाहित चमन की खुशबू तुमसे है फिर क्यों हो रही प्रताड़ित जिस्म का बाज़ार सज़ाया हवश का शिकार बनाया ह्रदय विदारक चीत्कारें हैं किसने ये अधिकार जताया सब दौलत की तू है खज़ाना घरवालों ने पराया माना पशुओं की तरह सौदा किया है बेदर्दी बन गया जमाना जालिमों ने जिन्दा जलाया दरिंदों ने जहर खिलाया नोंच डाला तन-मन को वहशियों ने खिलौना बनाया हर आँगन की तू है चिड़िया हर घर की तू है गुड़िया गिद्दों सी नज़र बुरी है तोड़ डाली स्नेह की लड़ियाँ पप्पू को स्कूल भिजवाया बेबी को घर पर बैठाया डाल दिया काम का बोझ देखो कैसे फूल मुरझाया तुझमे कोयल की मिठास है चाँद का शीतल प्रकाश है ह्रदय में अमृत कलश दर्द का पूरा अहसास है हर जगह है तेरा परचम देखा हमने तेरा दम-ख़म देश का नाम रोशन किया है नमन करते तुझे हरदम आसमान को नाँपा है समंदर को लांघा है चोटियों पर रखे कदम लहू से अपने सींचा है भेदभाव सब ये सहती मुँह से अपने कुछ न कहती बंदिशों की कई बेड़ियाँ खुल कर ये उड़ न पाती कोख में मरवा दिया झाड़ी में फिकवा दिया चीख कर पूछा उसने किस जुर्म का सिला दिया देवी हमको कहते हो कन्या पूजन करते हो जुल्म क्यों करते हम पर क़द्र क्यों नहीं करते हो जैसा बेटा वैसी बेटी न कोई छोटा न कोई छोटी मनुज जीवन सब एक सा न कोई खोटा न कोई खोटी माँ-बेटी से संसार चला है हर आँगन में प्यार पला है शिक्षा का अधिकार उसे दो कुरीतियों का सूरज ढला है इस देश पर राज किया है जिस्म को फौलाद किया है अबला अब सबला नहीं देश को आबाद किया है बेटी को भी हक़ मिले हर बगियाँ में फूल खिले सम्मान की जीये जिंदगी हर कदम से कदम मिले – एस डी मठपाल एस डी मठपाल जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
गगन सा तुम्हारा ह्रदय है
गगन सा तुम्हारा ह्रदय है
सब रागों की तुममें लय है
तुमको सिर्फ भोग्या माना
देखो अब कितना प्रलय है
गुलाब -चमेली तुममें समाहित
गंगा-जमना तुमसे प्रवाहित
चमन की खुशबू तुमसे है
फिर क्यों हो रही प्रताड़ित
जिस्म का बाज़ार सज़ाया
हवश का शिकार बनाया
ह्रदय विदारक चीत्कारें हैं
किसने ये अधिकार जताया
सब दौलत की तू है खज़ाना
घरवालों ने पराया माना
पशुओं की तरह सौदा किया है
बेदर्दी बन गया जमाना
जालिमों ने जिन्दा जलाया
दरिंदों ने जहर खिलाया
नोंच डाला तन-मन को
वहशियों ने खिलौना बनाया
हर आँगन की तू है चिड़िया
हर घर की तू है गुड़िया
गिद्दों सी नज़र बुरी है
तोड़ डाली स्नेह की लड़ियाँ
पप्पू को स्कूल भिजवाया
बेबी को घर पर बैठाया
डाल दिया काम का बोझ
देखो कैसे फूल मुरझाया
तुझमे कोयल की मिठास है
चाँद का शीतल प्रकाश है
ह्रदय में अमृत कलश
दर्द का पूरा अहसास है
हर जगह है तेरा परचम
देखा हमने तेरा दम-ख़म
देश का नाम रोशन किया है
नमन करते तुझे हरदम
आसमान को नाँपा है
समंदर को लांघा है
चोटियों पर रखे कदम
लहू से अपने सींचा है
भेदभाव सब ये सहती
मुँह से अपने कुछ न कहती
बंदिशों की कई बेड़ियाँ
खुल कर ये उड़ न पाती
कोख में मरवा दिया
झाड़ी में फिकवा दिया
चीख कर पूछा उसने
किस जुर्म का सिला दिया
देवी हमको कहते हो
कन्या पूजन करते हो
जुल्म क्यों करते हम पर
क़द्र क्यों नहीं करते हो
जैसा बेटा वैसी बेटी
न कोई छोटा न कोई छोटी
मनुज जीवन सब एक सा
न कोई खोटा न कोई खोटी
माँ-बेटी से संसार चला है
हर आँगन में प्यार पला है
शिक्षा का अधिकार उसे दो
कुरीतियों का सूरज ढला है
इस देश पर राज किया है
जिस्म को फौलाद किया है
अबला अब सबला नहीं
देश को आबाद किया है
बेटी को भी हक़ मिले
हर बगियाँ में फूल खिले
सम्मान की जीये जिंदगी
हर कदम से कदम मिले
– एस डी मठपाल
एस डी मठपाल जी की रचनाएँ
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