मन से जो करता सदा सीधी सच्ची बात भाई वो खाता नहीं कभी न जग में मात तेरे मेरे बिच कुछ मन से नहीं जुड़ाव इसीलिए तो प्रीत का दिखा न कहीं पड़ाव जाते जाते कह गया जब वो मन की बात सुबहा बनकर हँस रही घर में उसके रात उसके मन से जब मिला मेरा मनवा यार धक-धक-धक करने लगा मेरा हिय-संसार मन से सबको प्यार कर मन में ला न विकार सपन हंसेगे द्वार पर कर के नव श्रृंगार कोई सपनों में भरे सुन्दर सुन्दर रंग कोई अपनों से लड़े पीकर भाई भंग अपनी अपनी बात है अपना अपना ढंग जिसको जो अच्छा लगे वही भरे वो रंग – जगदीश तिवारी जगदीश तिवारी जी की दोहा जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मन से जो करता
मन से जो करता सदा सीधी सच्ची बात
भाई वो खाता नहीं कभी न जग में मात
तेरे मेरे बिच कुछ मन से नहीं जुड़ाव
इसीलिए तो प्रीत का दिखा न कहीं पड़ाव
जाते जाते कह गया जब वो मन की बात
सुबहा बनकर हँस रही घर में उसके रात
उसके मन से जब मिला मेरा मनवा यार
धक-धक-धक करने लगा मेरा हिय-संसार
मन से सबको प्यार कर मन में ला न विकार
सपन हंसेगे द्वार पर कर के नव श्रृंगार
कोई सपनों में भरे सुन्दर सुन्दर रंग
कोई अपनों से लड़े पीकर भाई भंग
अपनी अपनी बात है अपना अपना ढंग
जिसको जो अच्छा लगे वही भरे वो रंग
– जगदीश तिवारी
जगदीश तिवारी जी की दोहा
जगदीश तिवारी जी की रचनाएँ
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