मानस – दर्पण देख, दोष – गुण स्वयं निहारें । अपने को पहचान, आप ही आप सुधारें ।। यह आदत बेकार कि देखें दोष पराया । बेहतर होगा कार्य, करें निज दोष सफाया ।। अगर सभी हों साफ, धरा होगी सुखदाई । गाँठ बाँध लो मन्त्र, सभी बहनें अरु भाई ।। कर लें स्वयं सुधार, वरन पछताना होगा । अवध न जाए हार, अवध पति!आना होगा ।। – अवधेश कुमार ‘अवध’ अवधेश कुमार 'अवध' जी की कविता अवधेश कुमार 'अवध' जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मानस – दर्पण देख, दोष
मानस – दर्पण देख, दोष – गुण स्वयं निहारें ।
अपने को पहचान, आप ही आप सुधारें ।।
यह आदत बेकार कि देखें दोष पराया ।
बेहतर होगा कार्य, करें निज दोष सफाया ।।
अगर सभी हों साफ, धरा होगी सुखदाई ।
गाँठ बाँध लो मन्त्र, सभी बहनें अरु भाई ।।
कर लें स्वयं सुधार, वरन पछताना होगा ।
अवध न जाए हार, अवध पति!आना होगा ।।
– अवधेश कुमार ‘अवध’
अवधेश कुमार 'अवध' जी की कविता
अवधेश कुमार 'अवध' जी की रचनाएँ
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