जाने अनजाने रिश्ते भी ख़ास हो जाते हैं जब पैसे दो पैसे किसी के पास हो जाते हैं मुफलिसी में चने बादाम नज़र आते हैं निबोलो के गुच्छे भी आम नज़र आते हैं हादसों की आग पे भी सेंकते रोटी हैं लोग मौत के माहौल में भी देखते रोटी हैं लोग पृष्ठ जब खुलेंगे कभी मेरे इतिहास के टुकड़े मिलेंगे टूटे हुवे विष्वास के – इक़बाल हुसैन “इक़बाल” इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ [simple-author-box] अगर आपको यह रचना पसंद आयी हो तो इसे शेयर करें
मतले ही रह गये
जाने अनजाने रिश्ते भी ख़ास हो जाते हैं
जब पैसे दो पैसे किसी के पास हो जाते हैं
मुफलिसी में चने बादाम नज़र आते हैं
निबोलो के गुच्छे भी आम नज़र आते हैं
हादसों की आग पे भी सेंकते रोटी हैं लोग
मौत के माहौल में भी देखते रोटी हैं लोग
पृष्ठ जब खुलेंगे कभी मेरे इतिहास के
टुकड़े मिलेंगे टूटे हुवे विष्वास के
– इक़बाल हुसैन “इक़बाल”
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की ग़ज़ल
इक़बाल हुसैन “इक़बाल” जी की रचनाएँ
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One reply to “मतले ही रह गये”
Alok Pratap Singh
No doubt, these words are coming from a veteran, every single word is not only truth but bitter truth.